पृथ्वी का दर्द–रोमा कुमारी

One News Live Network.(TOB)

*२२ मार्च : पृथ्वी दिवस विशेष**पृथ्वी का दर्द*————-
        एक बार एक शिक्षक बंधु प्रकृति के अवलोकन हेतु भ्रमण पर निकले। वहाँ उन्होंने  किसी के  सिसकने की आवाज सुनी।*शिक्षक बंधु*- अरे यह कौन रो रहा है? यह किसकी आवाज़ है ?उन्होंने उस  आवाज  की ओर अपने कदम बढ़ा लिए। वहाँ उन्होंने एक देवी को रोता हुआ पाया। *शिक्षक बंधु*- आप कौन हो देवी? आप इस प्रकार संताप क्यों कर रही हो?*देवी*- मैं जननी हूँ ,मैं धरा हूँ, मैं पृथ्वी माँ हूँ।*शिक्षक बंधु*- पर आप इस जीर्ण-बदहाल अवस्था में क्यों हैं? आपके इस हरे-भरे आँचल को किसने तार-तार कर दिया है?*धरा*- तुम सुनना चाहते हो तो सुनो मेरी कहानी—          जब मैं युवा थी तब मैं विभिन्न संपदाओं से भरी पड़ी थी। मेरा प्राकृतिक सौंदर्य लावण्य पूरे ब्रह्मांड में विख्यात था। पर मैं अकेली थी इसलिए मैंने अपने तीन पुत्रों को जन्म दिया। 
प्रथम पुत्र का नाम *वनस्पति* रखा। वह बड़ा ही परोपकारी तथा उदार प्रवृत्ति का है उसे अपनी माता से भी बहुत प्यार है। उसने मेरे आँचल को हरा-भरा बना दिया। परंतु वह एक ही जगह स्थिर रहने वाला है।
 फिर मैंने दूसरे पुत्र *जीव जंतु* को  जन्म दिया जिसके वंशज भिन्न-भिन्न थे। जिन्हें देखकर मैं आनंद  विभोर  हो उठती थी।
अंत में मैंने अपने सबसे  लाडले, *बुद्धिजीवी मानव* को जन्म दिया और उसकी बुद्धिमता को देखकर मैंने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया। उसके दोनों बड़े भाईयों की देखरेख का कर्त्तव्य मैंने उसके कंधों पर दिया ताकि मेरा पूरा परिवार खुशहाल होकर जी सके।          एक माँ का सुख उसके अपने बच्चों के प्यार भरी एकजुटता में ही तो होता है। परंतु विरासत कीमत न जानकर मेरे छोटे पुत्र ने सारी सीमाएँ लाँघ ली।*शिक्षक बंधु*- पर कैसे?*धरा*- जिस माँ ने संपूर्ण शरीर से  उसकी पालना की उसने उस माँ के सीने पर वार-ही-वार किया। विकास की होड़ में आकर मेरे पर्वतों के सीने को चीर-फाड़ डाला, जो कभी  मेरे मस्तक की शोभा बढ़ाया करता था। उसने जिस माँ का दूध पिया उसी में जहर घोल दिया।
*शिक्षक बंधु*- माँ का दूध?
*धरा*-  हाँ, हाँ! माँ का दूध। जिन नदियों की धारा में कभी अमृत बहा करती थी वहाँ आज कल-कारखानों के विषैले पदार्थ बहा करते हैं, जिससे सारे जलीय जीव-जंतु तबाह हो रहे हैं, वे विलुप्त होने की कगार पर हैं।उसने जल, वायु, मिट्टी  को अपनी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण दूषित कर दिया है। उसने वनस्पति के द्वारा दिए गए हरे-भरे आँचल को भी नोच डाला जिससे मैं अपने आप को ढककर सुरक्षित महसूस किया करती थी। पर अब मेरे इस आंचल को तो देखो, अब मैं सूरज की गर्मी सहन नहीं कर पा रही हूँ। मेरे सारे शरीर में जलन हो रही है। उसने मेरे दूसरे पुत्र के वंशजों को अभयारण्य रूपी पिंजरे में कैद कर दिया है और स्वयं मेरे पूरे शरीर पर आधिपत्य कर बैठा है।           पर कहते हैं न “विनाश काले विपरीत बुद्धि”, उसने रंग,भेष, भाषा के आधार पर अपनी माँ को कई टुकड़ों में बाँट डाला। अब वे उन टुकड़ों के लिए भी आपस में लड़ते-झगड़ते हैं। उनके लिए उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि के प्रयोग से कई और जैविक और अजैविक भयंकर हथियार बना डाले और वे पतन की ओर बढ़ चले।*शिक्षक बंधु*- पर आपने कुछ किया क्यों नहीं?*धरा*-  पर माँ की  विवशता तो देखो, माँ देख सकती है और ईश्वर से इनकी सदबुद्धि की कामना मात्र कर सकती है। पर प्रकृति का इंसाफ तो देखो वह यह सब सहन न  कर सकी!           आज एक विषाणु मात्र की उत्पत्ति ने पूरे विश्व की मानव जाति के अस्तित्व पर ही ग्रहण लगा दिया है। जहाँ एक ओर मानव के मन में भय का आतंक छाया हुआ है और उनकी दुनिया बस एक पिंजरे में समा गई है। जहाँ उन्होंने विकास के कोलाहल में सारे प्रकृति  को अशांत कर दिया है। आज उनके सिमटने मात्र के कारण अन्य सभी  जीव-जंतु, वनस्पति शांति की अनुभूति कर रहे हैं।*शिक्षक बंधु*- तब तो आपको सुकून मिला होगा?*धरा*- एक माँ को सुकून कैसे मिल सकता है! जब उसके लाडले पुत्रों के वंशजों की चीत्कार उसके कानों  में पड़ रही हो। आज भी समय उन्हें चेतावनी दे रहा है, ठहरे रहो! धीर और अनुशासित बनो। प्रेम का अनुसरण करो। फिर भी इनके यह बढ़ते हुए कदम कोई रोक लो… कोई रोक तो लो..
कहीं मेरी गोद सूनी न हो जाए…सूनी न हो जाए! यही है मेरा दर्द.. यही है मेरा दर्द…*शिक्षक बंधु*- हे माँ, यह शिक्षक किस प्रकार आपकी सहायता करें जिससे आपका यह संताप मिट जाए?
*धरा*- हाँ, हाँ तुम सब कुछ कर सकते हो क्योंकि तुम पृथ्वी का भविष्य गढ़ते हो।
*शिक्षक बंधु*- हे माता मैं आपकी इस करूण-व्यथा को जन-जन तक पहुँचाऊँगा जिससे वे जागृत हो जाए ।
मैं मनुष्य की आगे की पीढ़ियों को जगा कर उन्हें आप के संरक्षण हेतु आवाह्न करूँगा, जिससे आप अपने पूरे परिवार के साथ संरक्षित एवं सुखी रह सकें।मैं अपने सभी शिक्षक सहयोगियों एवं अपने शिष्यों के द्वारा फिर से आपके आँचल को हरा-भरा कर दूँगा। यह मेरा आपसे वादा  रहा!

Cradit :Teacher’s of Bihar

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संघर्ष का एक मामूली प्रतिनिधि साथी राम बालक राय Foundar and Editor onenewslivein.com onenewslivein.wordpress.com https://onenewslivein.wordpress.com Biharone.wordpress.com You may whatsapp 9934874811, 9525830652, Calling 7903475734, ईमेल rambalaksahara@gmail.com https://twitter.com/rambalaksahara https://www.facebook.com/rambalak.roy.58

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